आज के दौर में जहां सूचनाएं तेजी से फैलती हैं, ऐसा माना जाता है कि सिर्फ तथ्य और आंकड़े ही लोगों की सोच और राय बनाते हैं। लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा जटिल है। इंसान कहानियों की ओर ज्यादा आकर्षित होता है — ऐसी कहानियां जो भावनाएं जगाएं, जुड़ाव बनाएं और याद रह जाएं।
चाहे वह किसी का व्यक्तिगत अनुभव हो या कोई वायरल मीम, हमारी सोच और समझ को कहानियां ही आकार देती हैं।
लेकिन यही ताकतवर माध्यम गलत उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म अब कहानियों को बहुत तेजी से फैलने का मौका देते हैं, जिससे फेक न्यूज़ और भ्रामक जानकारी Fake news and misinformation भी बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंच जाती है।
ये जानबूझकर फैलाए गए झूठ होते हैं, जिनका मकसद लोगों को भ्रमित करना और उनकी राय को प्रभावित करना होता है।
इस स्थिति को और भी चुनौतीपूर्ण बनाता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बढ़ता उपयोग। AI एक ऐसा उपकरण है जो गलत सूचनाओं को फैलाने में मदद कर सकता है, लेकिन इसके उलट, ये तकनीक इन झूठी कहानियों की पहचान करने और उन्हें रोकने में भी बेहद असरदार साबित हो रही है।
यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि कैसे AI अब ऐसी तकनीकों पर काम कर रहा है जो कहानियों की संरचना, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और यूज़र के व्यवहार को समझकर फेक न्यूज़ की पहचान कर सकता है।
इन नई तकनीकों की मदद से शोधकर्ता, सरकारें, सोशल मीडिया कंपनियां और आम लोग मिलकर डिजिटल युग की इस चुनौती का सामना कर पा रहे हैं और सार्वजनिक संवाद की सच्चाई को सुरक्षित रखने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
आज के सूचना-प्रधान दौर में माना जाता है कि तथ्य और आंकड़े ही लोगों की राय और सोच को आकार देते हैं। लेकिन असलियत कुछ और कहती है। सिर्फ सूखी जानकारी नहीं, बल्कि उनके पीछे की दिल छू लेने वाली कहानी ही लोगों के दिलों को छूती है।
दिल से जुड़ी कहानियां, निजी अनुभव और वायरल मीम्स — ये सब हमारी सोच पर गहरा असर डालते हैं। कहानियां हमारे दिमाग में बनी रहती हैं, भावनाएं जगाती हैं और हमें चीजों को समझने का तरीका देती हैं।
इंसान कहानियों के ज़रिए ही दुनिया को समझता है। वे न केवल जानकारी याद रखने में मदद करती हैं, बल्कि दूसरों से जुड़ने और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर हमारी राय बनाने में भी अहम भूमिका निभाती हैं।
हालांकि, यही ताकतवर तरीका कई बार गलत इरादों से भी इस्तेमाल किया जाता है। सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स पर कहानियां बहुत तेजी से फैलती हैं, जिससे फेक न्यूज़ और भ्रामक जानकारी भी बड़ी आसानी से लोगों तक पहुंच जाती है।
अब इसमें एक और चुनौती जुड़ गई है — आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)। AI का इस्तेमाल एक ओर जहां झूठी और भटकाने वाली कहानियों को तेजी से फैलाने के लिए किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर यह तकनीक इन्हें पहचानने और रोकने के लिए भी उपयोगी साबित हो रही है।
आज शोधकर्ता ऐसी AI तकनीकों पर काम कर रहे हैं जो कंटेंट का विश्लेषण करके यह पहचान सकती हैं कि उसमें झूठ या गुमराह करने वाली बातें हैं या नहीं। इसका मकसद है – सार्वजनिक चर्चा और संवाद की सच्चाई को सुरक्षित रखना।
AI के ज़रिए ऑनलाइन कहानियों और कंटेंट का विश्लेषण करने से पहले, यह जानना जरूरी है कि मिसइंफॉर्मेशन और डिसइंफॉर्मेशन में क्या फर्क होता है।
मिसइंफॉर्मेशन यानी ग़लत जानकारी जो बिना किसी बुरे इरादे के फैलाई जाती है। यह अक्सर गलतफहमी, अधूरी जानकारी या अनजाने में हुई गलती की वजह से फैलती है।
डिसइंफॉर्मेशन, इसके उलट, जानबूझकर फैलाई गई झूठी जानकारी होती है जिसका मकसद होता है लोगों को गुमराह करना और उनकी राय को बदलना।
इंसान स्वभाव से कहानियों की तरफ आकर्षित होता है। जब कोई जानकारी कहानी के रूप में दी जाती है तो वह आंकड़ों की तुलना में ज्यादा असरदार होती है। यही कारण है कि डिसइंफॉर्मेशन इतने बड़े स्तर पर फैलता है — क्योंकि इसमें भावनात्मक कहानियों का सहारा लिया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, यदि कोई दिल को छू लेने वाली कहानी सुनाई जाए जिसमें एक कछुए को प्लास्टिक में फंसा हुआ दिखाया जाए और फिर उसे बचाया जाए, तो यह कहानी हमें पर्यावरण की चिंता करने के लिए ज्यादा प्रेरित करेगी बनिस्बत केवल कुछ आंकड़े देखने के।
इसी वजह से फेक न्यूज़ फैलाने वाले अक्सर भावनाओं पर आधारित कहानियों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि लोग आंकड़ों की बजाय भावनाओं से प्रभावित होकर प्रतिक्रिया दें।
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सोशल मीडिया पर कोई क्या कह रहा है, यह जितना जरूरी होता है, उतना ही जरूरी होता है कि वो कौन कह रहा है और खुद को कैसे पेश कर रहा है। लोग सोशल मीडिया पर एक डिजिटल पहचान बनाते हैं, जो उनके यूज़रनेम या हैंडल के ज़रिए दिखती है। यही पहचान उनकी बातों की विश्वसनीयता और असर को बढ़ा सकती है।
AI टूल्स यूज़रनेम को पढ़कर यह अनुमान लगा सकते हैं कि उस व्यक्ति का लिंग, जातीयता या स्थान क्या हो सकता है। कई बार नाम के अंदाज़ में ही भावनाएं या व्यक्तित्व की झलक मिलती है।
उदाहरण के लिए, यूज़रनेम @JamesBurnsNYT पढ़कर लग सकता है कि ये व्यक्ति न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान से जुड़ा है, जिससे उसकी बात पर लोग ज्यादा भरोसा कर सकते हैं। वहीं, @JimB_NYC जैसा नाम ज़्यादा अनौपचारिक लगता है, भले ही ये दोनों अकाउंट एक ही व्यक्ति के हों।
फेक न्यूज़ फैलाने वाले लोग अक्सर ऐसे यूज़रनेम बनाते हैं जो भरोसेमंद संस्थानों की नकल करते हैं, ताकि लोग भ्रमित हों और गलत जानकारी को सच मान लें।
हालांकि सिर्फ यूज़रनेम देखकर किसी अकाउंट को पूरी तरह से असली या नकली नहीं कहा जा सकता, लेकिन AI की मदद से यह एक अहम संकेत बन सकता है कि वह अकाउंट कहीं फेक न्यूज़ फैलाने वाली किसी मुहिम का हिस्सा तो नहीं।
सोशल मीडिया पर कहानियां अक्सर सीधे-सीधे क्रम में नहीं होतीं। कई बार पोस्ट्स में घटनाएं उलझे हुए ढंग से बताई जाती हैं — कभी समय के क्रम से पहले की घटनाएं बाद में बताई जाती हैं, तो कभी जरूरी जानकारी ही छूट जाती है।
इंसान इन उलझी कहानियों को समझने में माहिर होता है। वह दिमाग से खाली जगह भर लेता है और मतलब निकाल लेता है। लेकिन AI के लिए यह काम आसान नहीं होता।
इसीलिए अब AI के लिए ऐसे टूल बनाए जा रहे हैं जो घटनाओं को सही क्रम में समझ सकें, उन्हें एक साथ जोड़ सकें और देख सकें कि कोई कहानी कितनी सच्ची और भरोसेमंद है। यह तकनीक फेक न्यूज़ की पहचान करने में बेहद जरूरी होती जा रही है।
हर भाषा और प्रतीक (symbol) का मतलब हर संस्कृति में अलग हो सकता है। अगर AI को इन सांस्कृतिक भिन्नताओं की समझ न हो, तो वह किसी कहानी का गलत मतलब निकाल सकता है या भावनात्मक संदेश को पकड़ नहीं पाएगा।
उदाहरण के लिए, जहां पश्चिमी देशों में सफेद रंग को शुद्धता और खुशियों से जोड़ा जाता है, वहीं कई एशियाई देशों में यह रंग शोक और मौत से जुड़ा माना जाता है। ऐसे में अगर कोई संदेश "सफेद रंग" के संदर्भ में दिया गया हो, तो वह अलग समाजों में अलग प्रतिक्रिया पैदा कर सकता है।
फेक न्यूज़ फैलाने वाले लोग इन्हीं सांस्कृतिक भिन्नताओं का फायदा उठाते हैं। वे ऐसी कहानियां बनाते हैं जो किसी खास समूह की भावनाओं से जुड़ जाएं और दूसरे समूहों को भ्रमित करें।
इसलिए AI को सिर्फ भाषा ही नहीं, बल्कि अलग-अलग संस्कृतियों की भावनाओं और प्रतीकों की गहरी समझ के साथ तैयार किया जा रहा है, ताकि वह इन झूठी कहानियों को पहचान सके जो संस्कृति के नाम पर लोगों को गुमराह करती हैं।
अब AI सिर्फ जानकारी को समझने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह अब कहानियों के ढांचे और उनके पीछे के इरादों को भी समझने लगा है। इसे ही Narrative-Aware AI कहा जाता है। इस तकनीक की मदद से फेक न्यूज़ और गलत जानकारी को पहचानना और रोकना पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो गया है।
सुरक्षा एजेंसियों को रोज़ाना भारी मात्रा में सोशल मीडिया पोस्ट्स की निगरानी करनी होती है ताकि वे झूठी खबरों और भावनात्मक रूप से उकसाने वाली मुहिमों को पहचान सकें।
Narrative-Aware AI उन्हें एक जैसी कहानियों के पैटर्न पहचानने, एक साथ फैलाई जा रही खबरों के झुंड को पकड़ने और पोस्ट्स की टाइमिंग में किसी तरह की संदिग्ध गतिविधि को समझने में मदद करता है।
इससे एजेंसियां सही समय पर कार्रवाई कर सकती हैं और फेक न्यूज़ को फैलने से रोक सकती हैं, जिससे लोगों की सोच और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गलत असर न हो।
जब बाढ़, भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, तो अफवाहें तेज़ी से फैलती हैं, जो लोगों में डर पैदा कर सकती हैं या जरूरी संसाधनों को गलत दिशा में भेज सकती हैं।
AI जो कहानी का संदर्भ समझता है, वह तुरंत झूठी आपातकालीन खबरों को पहचानकर अलग कर सकता है। इससे राहत कार्य करने वालों को सही और भरोसेमंद जानकारी पर फोकस करने में मदद मिलती है।
सोशल मीडिया कंपनियां अब AI की मदद से अपने कंटेंट की निगरानी को और बेहतर बना सकती हैं।
Narrative-Aware AI खुद-ब-खुद उन पोस्ट्स को पहचान सकता है जो गलत जानकारी फैला सकती हैं। इससे प्लेटफॉर्म ऐसे कंटेंट को इंसानों द्वारा जल्दी जांचने की प्राथमिकता दे सकते हैं — बिना ज़रूरत से ज्यादा सेंसरशिप किए।
इससे अभिव्यक्ति की आज़ादी भी बनी रहती है और यूज़र को गलत जानकारी से बचाया जा सकता है।
जो लोग समाज और जानकारी के फैलाव का अध्ययन करते हैं, उनके लिए ये AI तकनीक एक बड़ा सहारा है।
ये टूल यह पता लगाने में मदद करते हैं कि कहानियां कैसे फैलती हैं, किन समूहों में तेज़ी से फैलती हैं, और लोग कैसे उन पर प्रतिक्रिया देते हैं।
इससे शोधकर्ता और शिक्षक ज्यादा सटीक जानकारी पा सकते हैं और जनता को जागरूक करने वाले प्रोग्राम बेहतर बना सकते हैं।
इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा आम लोगों को मिलता है।
Narrative-Aware AI से यूज़र्स को ऐसे पोस्ट्स के बारे में रियल टाइम में चेतावनी मिल सकती है जो शक के दायरे में हों या फेक न्यूज़ लगती हों। इससे लोग सोच-समझकर किसी पोस्ट पर विश्वास करते हैं या उसे आगे शेयर करते हैं।
यह तकनीक लोगों को ज्यादा सतर्क और समझदार बनाती है, ताकि वे ऑनलाइन दुनिया में खुद को गुमराह होने से बचा सकें।
जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आगे बढ़ रहा है, यह सिर्फ कीवर्ड या शब्दों का अर्थ समझने तक सीमित नहीं रहा है। अब AI को ऑनलाइन कहानियों की गहराई, उनकी बनावट, संस्कृति से जुड़ी बातें और यूज़र की पहचान को भी समझने की ज़रूरत है।
फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के Cognition, Narrative, and Culture Lab जैसे संस्थान ऐसे AI टूल्स विकसित कर रहे हैं, जो फेक न्यूज़ और प्रोपेगेंडा को पहचानने में मदद करते हैं। ये टूल भाषा, मनोविज्ञान और संस्कृति से जुड़ी समझ का इस्तेमाल करके उस जानकारी का विश्लेषण करते हैं, जो जानबूझकर लोगों को गुमराह करने के लिए बनाई गई होती है।
आज के समय में, जब कहानियां तथ्यों से भी ज़्यादा असर डालती हैं, Narrative-Aware AI यानी "कहानी को समझने वाला AI" एक ज़रूरी तकनीक बन गई है जो सच को बचाने और फेक न्यूज़ के खिलाफ एक मजबूत रक्षा बन सकती है।
कहानियां इंसानी संवाद का हिस्सा हमेशा से रही हैं। उनकी भावनात्मक ताकत लोगों को जोड़ सकती है, बदलाव ला सकती है और समझ पैदा कर सकती है। लेकिन यही ताकत, जब सोशल मीडिया और डिजिटल तकनीकों के साथ मिल जाती है, तो लोगों को गुमराह करने का साधन भी बन सकती है।
इसलिए यह समझना ज़रूरी है कि कहानियां कैसे बनाई जाती हैं, उन्हें कौन और किस मकसद से बता रहा है, और वे किस सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में काम कर रही हैं।
Narrative-Aware AI ऐसे टूल्स तैयार कर रहा है जो इन कहानियों की गहराई में जाकर फेक कंटेंट को पहचान सकते हैं। इससे सरकारें, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, रिसर्चर और आम लोग — सभी को मदद मिलती है।
अगर हम इन तकनीकों का इस्तेमाल सोच-समझकर और जिम्मेदारी से करें, तो हम इंटरनेट पर फैल रही गलत जानकारियों से बच सकते हैं और एक ज्यादा सचेत और समझदार समाज बना सकते हैं।