भ्रष्टाचार

8830
31 Jul 2021
1 min read

Post Highlight

बढ़ता भ्रष्टाचार देश को खोखला कर देता है। मगर देश में भ्र्ष्टाचार की बढ़ती-घटती कहानी को मेरे द्वारा इस कविता में एक काव्यात्मक रूप देते हुए इस मुद्दे को समझाने की एक छोटी सी कोशिश की है। तो आइये पढ़ते हैं भ्रष्टाचार से जुड़ी ये कविता -

Podcast

Continue Reading..

जहाँ चलता ना कोई उधार है,

सरकारी बाबुओं का होता जिससे उद्धार है,

जिसकी ना कोई सीमा ना कोई आकार है,

जो बिन मेहनत कमाई का व्यापार है,

अरे भई, इसी का नाम तो भ्रष्टाचार है...

 

हाँ मैं जानता हूँ पैसे देने में कष्ट हो जाता है,

जीवन पूँजी का कुछ हिस्सा नष्ट हो जाता है,

तू पहले ख़ुद ही पैसे देकर नौकरी लेता है

फिर ख़ुद ही पैसे लेकर भ्रष्ट हो जाता है...

 

यहाँ पैसों की खातिर अपनों ने अपनों का काटा गला है,

भ्रष्टाचारी सिस्टम में, जहाँ हर कोई गया छला है,

कामचोर कुर्सी पर बैठ अपनी किस्मत लिखते हैं

मगर मेहनत करने वालों ने तो अपने हाथों को ही मला है...

 

ईमानदारी के चोले में घूस लेना अरे ये भी तो एक कला है,

और बिन खर्चा - पानी के, यहाँ कौन सा काम चला है... 

 

भ्रष्टाचार की आग में आज पूरा देश जल रहा है,

भ्रष्टाचार का पैसा swiss bank में डल रहा है,

लोग भी सच कह रहे हैं उनका परिवेश बदल रहा है,

क्यों कि भ्रष्टाचार का उपाय भी भ्रष्टाचार से ही निकल रहा है...

 

ज़माने के शोरगुल में लिपटे कितने अत्याचार हैं,

फिर भी यहाँ शांति से हो रहे कितने भ्रष्टाचार हैं...

TWN Prime