कालीन, ज़री ज़रदोजी और शाहजहाँपुर

9021
31 Jul 2021
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जहाँ पुराने रस्ते खोने लगें और लोग उसको भूलने लगें तब हमें एक नई पहल के साथ, नए औजारों के साथ फिर उसी पुराने रस्ते को चमकना चाहिए। कालीन और ज़री-ज़रदोज़ी का व्यवसाय भी हम से उसी तरह की नई उमंग नई पहल चाहता है तो, आइये शुरू करते हैं और वहीँ चलते हैं उसी सड़क पर जो शाहजहाँपुर के व्यवसाय को पूरी दुनिया में प्रचलित कराती है।

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जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते रहते हैं, वैसे-वैसे हम अतीत की कलाकारी को छोड़ते चले जाते हैं। एक तरह से देखा जाए तो ये सही भी है और नहीं भी है, दोनों बातों का एक दूसरे से गहरा सम्बन्ध है। अतीत को छोड़ना इसलिए बेहतर है क्योंकि आगे बढ़ने के लिए ये आवश्यक हो जाता है। नए-नए आविष्कार नई-नई तकनीकी कई नए रास्ते खोलती है जिस कारण हम पुरानी परम्पराओं से अलग होते चले जाते हैं।

रही दूसरी बात, की अतीत को क्यों नहीं छोड़ना चाहिए। वो इसलिए क्योंकि अतीत की कुछ चीज़ें कुछ, कुछ वस्तुएं, कुछ तकनीकियां बहुत कारगर होती हैं, जिनसे जुड़े रहना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि वो शायद कईयों को प्रेरणा, जीवन जीने का तौर तरीका और रोजगार के कई अवसर आज तक प्रदान कर रहीं हों। आज के समय में कुछ लुप्त होती चीजों को फिर से उड़ान देना कौन चाहता है। किसको पड़ी है, खो जाने वाली चीजों को तलाशने की जबकि उसके पास उस वस्तु से बेहतर वस्तु उपलब्ध है। शायद इसलिए भी पुरानी चीज़ें तथा पुरानी वस्तुएं मरती जा रही हैं। हमारी कोशिश तो यही रहेगी की हम दुबारा से उनमें जान फूकें, फिर से उनमे साँसे डालें और फिर एक बार उन व्यवसायों को उसकी पुरानी रौशनी, अदाएगी और उसको उसके पैरों पे खड़ा कर सकें। ऐसी कोशिश लेकर आपसे चर्चा करते हैं। 

 

कालीनों का शहर शाहजहाँपुर 

शहीदों की नगरी जहाँ कितने बड़े-बड़े क्रांतिकारी जन्म लिए और देश की आज़ादी के लिए खुदको समर्पित कर गए। जिनमे अशफ़ाक़ उल्लाह खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रौशन सिंह जैसे महान लोगों का ज़िक्र करते हुए और उनको नमन करते हुए आगे की बात शुरू करते हैं। जिस तरह क्रांतिकारीयों के पैरों की की धूल इस शहर में शामिल है, उसी तरह कुछ ऐसे व्यवसाय भी आज तक जीवित हैं, जो अब ज़रा मंद सी, धीमी सी साँसें ले रहे हैं आईये उनका ज़िक्र करते हैं। और बात करतें हैं उन व्यवसायों की और उनसे जुड़ी ज़रूरतों की।    

कालीनों का व्यवसाय और ज़री -ज़रदोज़ी के व्यवसाय की बात करें तो ये आज के व्यवसाय नहीं है मुगलिया सल्तनत से चलते आ रहे, ये व्यवसाय आज भी उसी तरह उसी शिद्द्त से बढ़ते जा रहे हैं। ऐसा माना जाता है की मुगल काल में इस व्यवसाय से जुडी वस्तुएं बनती थी। कालीनों को राजाओं की महल की सुंदरता बढ़ाने के लिए फर्श पर बिछायी जाती थी जिसके लिए बड़े कीमती धागों का इस्तेमाल किया जाता था। जिसमें रेशम के धागे प्रचलित थे। कुछ कालीनों को पश्मीना से भी सजाया जाता था जो की कश्मीर का बहुत प्रसिद्द धागा है। मगर आज़ादी के बाद जैसे-जैसे औद्योगिकी का विकास होता गया वैसे-वैसे इन व्यवसायों में मंदी बढ़ती गयी और आज ये व्यवसाय लुप्तता की कगार पर। 

हमारी कोशिश ये है कि इन व्यवसायों में थोड़ी आधुनिकता लाकर इसको और भी व्यवस्थित ढंग से नया रूप दे सकते हैं और रोजगार भी स्थापित कर सकते हैं। उन लोगों को जो इस कार्य को कर रहें हैं, उनको प्रोत्साहित भी कर सकते हैं। वह इस कार्य और बेहतर तरीके से शुरू कर सकते हैं। 

 

ज़री -ज़रदोज़ी व्यवसाय

ज़री-ज़रदोज़ी इस व्यवसाय में भी कुटीर स्तर पर थमी-थमी सी उन्नति ही देखने को मिल रही है। मगर एक समय इस कार्य में, इस कला में सूरज जैसी चमक देखने को मिलती थी। मुगलिया सल्तनत के समय इस कलाकारी को कई वस्तुओं, कपड़ों, आदि को सजाने का काम किया जाता था। इतिहास कहता है कि इसको सोने-चांदी से भी कलाकृत किया जाता था, जो उस समय की बहुत कीमती कलाकारी मानी जाती थी। आज हमारी ये ज़िम्मेदारी बनती है की हम इन छोटे व्यवसायों को और ऊपर उठाने की कोशिश करें, उसमें रोजगार पैदा करें और खत्म होती कलाकारी को फिर से एक नई रौशनी दें, नई किरण प्रदान करें। 

छोटी-छोटी कोशिश से धीरे-धीरे पुराने व्यवसायों की तरफ बढ़कर लोगों को रोजगार देने की एक पहल शुरू कर उन्हें नया जीवन देने का प्रयास किया जा सकता है। आप और हम मिलकर खोजते हैं इन व्यवसायों को और उनका नया रूप सजाते हैं। 



शहर के खोये व्यवसायों की आओ सबको याद दिलाएँ! 

छोटी-छोटी कोशिश करके फिर बीते व्यवसाय सजाएँ !!

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